Sadhana Shahi

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अनोखी सज़ा (कहानी)-02-Feb-2024

अनोखा जज

संघर्ष ही विद्यार्थी का जीवन है, मंजिल उसके जीवन का हिस्सा है। कोई सीधे तो कोई नटखट, सबका ही अलग-अलग किस्सा है।

उनके कंधों पर है मांँ के सपनों का बोझ, मन- मस्तिष्क में है पिता की ऊंँची सोच। शिक्षक की आभा उनमें है दिखती, रहते उनसे सदा ओत-प्रोत।

यदि किसी भी व्यक्ति से पूछा जाए कि आपके जीवन का सर्वोत्तम समय कौन सा था, तो शायद हममें से बहुधा लोगों का ज़वाब होगा विद्यार्थी जीवन। किंतु अफ़सोस इस मूल्यवान समय का आभास तब होता है जब यह समय हमारे हाथों से निकल जाता है।

और फिर वहांँ- 'का वर्षा जब कृषि सुखाने, समय बीति पुनि का पछताने।' वाली उक्ति चरितार्थ होती है।

झारखंड के एक गांँव के निजी विद्यालय में रोहन नाम का विद्यार्थी अध्ययनरत था। उसका नाम अति शरारती बच्चों में शामिल था। स्कूल में जब भी कभी किसी शरारती बच्चों की बात होती तो बिना जाने- समझे उसका नाम सबसे पहले आ जाता।

एक बार खेल का घंटा था सभी बच्चे बाहर गए हुए थे लेकिन रोहन अस्वस्थ होने की वज़ह से बाहर नहीं गया। वह कक्षा में ही बैठा रहा। कुछ देर तो वह शांति से बैठा रहा किंतु कुछ देर के पश्चात उसके शैतानी दिमाग में खुराफ़ात चलने लगी और वह खेल की शिक्षिका जो अपना पर्स क्लासरूम में ही रखकर खेल के मैदान में चली गई थीं। उसको खोला उसमें से उसने ₹500 का नोट निकाला पर्स बंद किया और जहांँ पर था उसे उसी स्थिति में रख दिया। खेल का घंटा समाप्त हुआ सभी बच्चे क्लास में आए शिक्षिका भी क्लास में आईं, बैग उठाईँ आगे जहांँ का कालांश था वहांँ चली गईँ। जब वह बैग खोल रहा था उसी समय एक चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी वहांँ से गुज़रा। उसने रोहन को मैम के पर्स से पैसे निकालते देख लिया था। अतः जब मैम स्टाफ रूम में आईं तो उसने रोहन की हरकत के बारे में बताया। मैम उसकी बात को बहुत ध्यान से सुनीं,थोड़ी सी गंभीर हुईं,थोड़ा उनके चेहरे पर एक चिंता की रेखा आई, फिर उस कर्मचारी से बोलीं, ठीक है तुम जाओ लेकिन यह बात किसी को नहीं बताना। किंतु गार्ड को तसल्ली नहीं हुई। क्योंकि, रोहन शरारत में इतनी ख्यति अर्जित कर लिया था कि उसकी शरारत से हर कोई परेशान था और उस कर्मचारी को एक अच्छा अवसर मिला था रोहन को सज़ा दिलाने का। वह उस मौके को किसी भी क़ीमत पर खोना नहीं चाहता था। उसने रोहन से बोला कि तुमने जो पैसा निकाला है वह मैंने देख लिया और मैम को बता भी दिया है। अब वो तुम्हारे पेरेंट्स को बुलाएंँगी रोहन जो कितना भी शरारती था, लेकिन था तो बच्चा ही। अब वह डरने लगा वह जब स्कूल आए तो यही सोचे कि आज मैम मेरे पेरेंट्स को तो नहीं बुलाएंँगी। ऐसे ही दिन बीतते रहे। एक दिन, दो दिन, चार दिन, सप्ताह 2 सप्ताह बीत गया मैम ने रोहन को न डांँटा न ही उसके पेरेंट्स को बुलाया और क्लास में भी आतीँ तो रोहन के साथ उनका कोई अलग व्यवहार नहीं होता। यह बात रोहन को तथा उस कर्मचारी दोनों को बड़ी अटपटी लगी। कि मैंम को रोहन के कारनामे के बारे में पता है फिर भी वह इतनी सामान्य क्यों और कैसे हैं? अंततः उस कर्मचारी के सब्र का बांँध टूट गया।वह मौका देखकर जब मैम खाली घंटी में बैठी थीं तब उनके पास गया और बोला मैम रोहन ने इतनी बड़ी ग़लती की और आपने उसे कोई सज़ा नहीं दिया, ऐसा क्यों? तब मैम ने मुस्कुराते हुए कर्मचारी का चेहरा देखा और बोलीं आप इस बात को नहीं समझेंगे। तब उस कर्मचारी ने कहा लेकिन मैं समझना चाहता हूंँ कि आपने उसे सज़ा क्यों नहीं दिया? तब मैम बड़ी प्यार से मुस्कुराते हुए उस कर्मचारी को ज़वाब दीं। उसे सज़ा मिल रही है भईया से उसे 15 दिनों से रोज़ सज़ा मिल रही है। वह अंदर ही अंदर डरा हुआ है जितनी देर वह विद्यालय में है उतनी देर डरा हुआ, सहमा हुआ है। वह क्लास में एकदम शांत हो गया है।उसे सदैव डर हू कि मैंम कभी भी मुझे बुला लेंगी। कभी भी मेरे पेरेंट्स को बुला लेंगी। इससे बड़ी सजा और क्या हो सकती है!

उसने अपनी एक गलती के कारण अपनी चंचलता, अपनी मौज- मस्ती सब कुछ खो दिया है। वह बिल्कुल शांत हो गया है। वह अपराध बोध से मुक्त नहीं हो पा रहा है। उसके अंदर अपराध बोध घर किया हुआ है। घर जाने के पश्चात सभी बच्चे हंँसते- खेलते, मौज- मस्ती करते, पढ़ाई-लिखाई करते होंगे लेकिन यह डरा रहता होगा कि कभी भी मैम का फ़ोन आ जाएगा। कभी भी मैम हमारी चोरी की बात घर में सभी को बता देंगी। मुझे बुरा भी लग रहा है कि मैं अगर उसे सज़ा दे दी रहती तो शायद इतना डरा हुआ नहीं रहता, जितना बिना सज़ा के है। लेकिन कुछ सज़ा ऐसी होती है जिसे बिना ज़ुबान चलाए, बिना हाथ उठाए दिया जाता है और यह सज़ा उन्हीं में से एक है।

तुम इस बात को इतना तूल क्यों दे रहे हो? अब देखना उसकी यह ग़लती ही उसे सुधारने में मदद करेगी ऐसा मेरा विश्वास है।बस अब आप देखते ही जाइए।

मैं उसका नाम अति शरारती बच्चों की लिस्ट से बाहर लाना चाहती हूंँ। और मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे द्वारा दी गई यह अनोखी सज़ा इस काम को बख़ूबी कर जाएगी। क्योंकि भैया, गलती करने पर भी कोई दंड न देना दुनिया का सबसे बड़ा दंड है। जो दंड को रोहन भोग रहा है। वह कर्मचारी अब मैम को देखे जा रहा था और भाव- विभोर होकर उनकी बातों को सुने जा रहा था, सुने जा रहा था और बस सुने ही चला जा रहा था। जब मैम अपनी बात पूरी कर लीँ तो बिना कुछ कहे मैम का चरण स्पर्श किया और बोला धन्य हैं मैम आप! सच ही कहा जाता है कि शिक्षक भगवान रूप होते हैं और आज उस भगवान का दर्शन मैंने आपके रूप में कर लिया। मेरा जीवन धन्य हो गया मैं जीवन में कभी भी आपको नहीं भूल पाऊंँगा यदि आप जैसी सोच हर शिक्षक में आए जाए तो शायद कोई बच्चा रोहन न बन पाए।

सीख-प्रस्तुत कहानी में एक अनोखे जज के व्यक्तित्व को दिखाया गया है। जो बच्चे में सुधार लाने के लिए कोई सज़ा न देकर भी एक ऐसी सज़ा देती हैं जो बच्चे के जीवन पर अमिट प्रभाव डालता है और बच्चे में मनवांछित सुधार होता है।

साधना शाही, वाराणसी

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5 Comments

Shnaya

07-Feb-2024 07:47 PM

Nice one

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Milind salve

05-Feb-2024 02:34 PM

Nice

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Gunjan Kamal

03-Feb-2024 11:19 PM

बहुत खूब

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